Sunday, December 20, 2009

बे-ज़ुबान रातें


ढल चुकी है आधी रात मेरी आँखो में,

ना नींद का निशान है, और चैन भी गुम है

ये तेरे प्यार का मुझ पर नही असर संग-ए-दिल

ये तो तेरे छोड़ के जाने से मन गुम्सुम है


पहले भी मैं रातों को जगा करता था

ये आँखें भोर तक खुली की खुली रहती थी

जो रात आज तेरी याद में गुजरती है

पहले वो तेरे इंतेज़ार में गुजरती थी


कभी मैं हंस के अपने गम को छुपा लेता था

अब तो मेरे चेहरे की हसी में भी दरारें हैं

और मेरे मन की गली में जो सूनापन है

ऐसा लगता है जैसे मौत के नज़ारे हैं


मैं अपने दिल की कहानी जब तक ना लिख दू

ख्वाब का ना पता नींद भी नही आती

है तू चली गयी मुझसे दामन छुड़ा के

क्यूँ छोड़ के तेरी यादें मुझे नही जाती