Friday, September 24, 2010

क़रार आता है

उसके जाने का असर
कुछ ऐसा हुआ मुझ पर
अब तो महफ़िल से डर,
तन्हाई पे प्यार आता है
अपनो का भरोसा होता नही
पर गैरों पर यकीन हो जाता है

बारिश की बूँदो का ख़ौफ़ है मुझको
भीगना चाहता हूँ,
पर सैलाब बरस जाता है

बुझ जाए शमा तो कोई गम नही
कोई फिर से ना जला दे
ये ख़याल डरा जाता है

आज उस मोड़ पर खड़ा हूँ, जिसे चाहा ना था
जिन ख्वाबो को किसी ने, बेरहमी से मसल दिया
उन्ही लम्हो को दोहराने में, इस दिल को क़रार आता है

Wednesday, September 1, 2010

वो तो बस छोड़ के जाने की बात करते हैं
कभी मिलते हैं, कभी मिलने से भी डरते हैं
बस यही रीत है दुनिया की क्या कहूँ, सागर
लोग मेरे कब्र पे आने को भी सवरते हैं

ऐ दिल-ए-नादान


ऐ दिल, ऐसी नादानी ना कर!
मुस्कुराने दे मुझे, बेईमानी ना कर...

उठने दे नक़ाब इस रुख़ से ज़ालिम
अपने दीवाने से परदा-दारी ना कर...

उसका ख़याल ही, बेकरार कर देता है
तू भी चुप रह कर अब बेकरारी ना कर...

लूट ले जाने दे , मेरे ख्वाबो के जहाँ को
दरवाज़ा खुला छोड़ दे , पहरेदारी ना कर...

बसने दे ख़यालो में, उस चेहरे की हक़ीक़त, सागर
जो आँखें ही जला दे, उन ख्वाबो से यारी ना कर