Thursday, December 10, 2009

इंतेहाँ


थी कितने राज़ समेटे हुए, ये आँखें जो पथराई थी

कल सावन क संग बरस गयी, तेरे गम में जो भर आई थी


रोका था जिसको जाने से, माँगा था जिसे दुआओं में

वो छोड गया मुझको ऐसे, पतझड़ की सूनी फ़िज़ाओ में


अब देख मुझे तन्हा-तन्हा, तन्हाई भी डर जाती है

और मुझे हसाने की खातिर ये बिजली भी लहराती है


खोने से पहले डरता था, खोने के बाद भी डरता हूँ

पहले तो मिलनेका गम था, अब ना मिलनेको मरता हूँ


लोगो से तो मैं छुपा भी लू, पर खुद मैं भूल नही पाता

है कोई याद मुझे हर पल, जिसको मैं याद नही आता :’(


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