Monday, September 28, 2009

ना नींद है आँखों में,सपनों की भी कमी है

अश्कों की धार से क्यूँ इन पलकों में नमी है

क्यूँ दिल मेरा डरता है, हर दिन के गुजरने से

तुझे खोने के डर से क्यूँ ये सासें भी थमी है


था बिखरा आसियाना ये दिल बिखर चुका था

तुमने इसे संजोया , जो कब का मॅर चुका था

जीने की आस मुझमे, फिर से जगाई तुमने

चलने की एक वजह दी, जो सदियों से रुका था


ना तोड़ जाओ उनको, जो पहले से टूटे हैं

ना छीनो खुशी लब से, की कब से ये रूठे हैं

गर अब बिखर गया तो, फिर जुड़ ना सकूँगा मैं

आयत है समझा जिनको, क्या वादे वो झूठे हैं ?


कोई तुम्हे बताए ,तुम्हे कितना चाहता हूँ

हर एक दुआ में रब से, क्या क्या मैं माँगता हूँ

तेरे लबों पे खुशिया खिलती रहे सदा यू

और गम तेरे सारे मैं बदले में माँगता हूँ


1 comment:

Akanksha said...

very touching