कोई तो मुझे निकालेगा, जीवन की नाव संभालेगा
ये आस थी मन में बसी हुई
पर सच तो है ये आता नही, कोई भी तुम्हे बचाने को
तुम पानी क लिए तड़पो और सब आए आग लगाने को
थक गया भाग-भाग कर अब,
जाने आएगी मंज़िल कब
कोई जो राह दिखाएगा, मेरा हमराही कहलाएगा
कितना आसान लगता था सब
पर सच तो है ये आता नही, कोई भी राह दिखाने को
तुम एक किरण को तरसो, और सब आए दीप बुझाने को
थी चाह मुझे फूलों की भी ,
और खुश्बू की थी ख्वाइश भी,
कोई तो बाग लगाएगा, सारा आँगन महकाएगा
था स्वप्न यही पतझड़ में भी
पर सच तो ये है आता नही, कोई भी बाग लगाने को
तुम आस लगाओ फूलो की, सब आए काटें चुभाने को
नदिया भी अब रुक जाती है,
क्यूँ बहने से कतराती है
कोई तो उसे बहाएगा, एक राह भी नयी बनाएगा
ये सोच के वो थम जाती है
पर सच तो ये है आता नही, कोई भी वेग बहाने को
वो राह खोजती फिरती है, सब आए बाँध बनाने को
हर दुख को अब मैं सहता हूँ,
जीवन से लड़ता रहता हूँ
इतना तो मैने जान लिया, खुद को भी अब पहचान लिया
और इसीलिए मैं कहता हूँ
बस सच तो ये है आता है, तू ही खुद को समझाने को
खुद को विजयी कर जाने को और हार से जीत चुराने को
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