है भोर हो गयी अब, सूरज भी निकल आया
है जिस सुबह की हमको तलाश वो कहा है
कितनी ही रातें बीती, तेरी याद में ओ हमदम
हो तू मेरी बाहों में वो रात अब कहा है
बस आस है आएगी, मेरे लिए ही फिर तू
होने को शाम आई, ये दिन भी ढल रहा है
मुझे भूलने से पहले, बस मिल के चली जाना
तुझे देखने की खातिर, ये मन मचल रहा है
है याद मुझको अब भी, सर्दी की शाम कातिल
जब शीत गिर रही थी और सब ठिठुर रहे थे
देखा था मैने तुझको, आगोश में किसी के
तब भी ये दिल जला था और अब भी जल रहा है
तेरी मेरी कहानी, लिखने चला था मैं भी
कलम है बे ज़ुबान और कागज भी रो रहा है
जिसे उम्र भर भरने को बाहें तड़पती मेरी
ना जाने क्यूँ किसी की बाहों में सो रहा है
1 comment:
very touching.....
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