Sunday, January 24, 2010

जुदाई


जिंदगी यू ही बिता दू तो कोई गम ना हो

अपने सपनो को भुला दू तो कोई गम ना हो

ये उम्र ही नही, मैं जान भी लूटा दू तुझ पर

कि भूल कर भी जुदाई का ये सितम ना हो


मुझे दोजख की आग से कोई गिला नही

इस जमाने के सितम से भी शिकवा नही

ऐ खुदा थोड़ी सी करम मेरे हिस्से लिख दे

कि ये तन्हाई मेरे दर्द की दवा नही


चली आ लौट के तू इतना भी गुरूर ना कर

अपनी चाहत को निगाहों से मेरे दूर ना कर

जिन्हे पॅल्को में सज़ा रखा था मोती की तरह

वो छलक जाएँगे, मुझे रोने पे मजबूर ना कर


मैं तो काफ़िर हूँ खुदा का, तेरा दीवाना हूँ

लोग कहते हैं की दुनिया से मैं बेगाना हूँ

वो जानते ही नही, इस दिल के धड़कने की वजह

कि साँस तेरी चल रही है, मैं तो जिंदा भर हूँ

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