Friday, January 8, 2010

आदत

अभी तक तो मैं अकेला ही चला जा रहा था,

मेरे इस सुनसान सफ़र में ये साथ किसका है

जिसे थाम कर चलने से उसने इनकार किया था

उन बदनसीब हाथो में जाने ये हाथ किसका है


साथ चलने से पहले, तुझे ये बताना चाहता हूँ

मुझे मंज़िल का क्या रास्ते का भी पता नही

मैं आज जो भी हूँ, जैसा भी हूँ, मानता हूँ

मेरी तन्हाई मेरी ग़लती है, पर क्या इसमे उसकी कोई ख़ाता नही


ऐ मेरे हमसफर मत देख इन आँखों में

इन आँखों की अब ज़ुबान नही है, ये बोल नही सकती

जो पलके उठ कर ही दुनिया के राज़ बता देती थी

आज वो चाह कर भी,राज़-ए-दिल खोल नही सकती


डर ये नही कि लोग मुझे रोता देख लेंगे,

और सोचेंगे हाल-ए-दिल की वजह क्या वही है

मैं तो बस डरता हूँ होठों के खुलने से

कि इस ज़ुबान को तेरे नाम की आदत सी हो गयी है

No comments: