Thursday, January 14, 2010

दास्ता-ए-मोहब्बत

आँखो के समंदर हैं, पॅल्को के किनारे हैं

रूठी सी एक फ़िज़ा है, पतझड़ से नज़ारे हैं

ज़हरीली सी महक है, फूलो की खुश्बूयो में

जो तुम चले गये हो, ये हाल हमारे हैं


जो पेड़ से गिरा है, उस पत्ते की कहानी

बैठो करीब मेरे, सुन लो मेरी ज़ुबानी

आगोश में उसी के, एक फूल भी छिपा था

जब तेज थी हवायें, और था बरसता पानी


सारी उमर लगा कर भी फूल को था चाहा

सह कर सितम जहाँ के वो फिर भी मुस्कुराया

उसके लिए मरने को ही जैसे वो जिया था

हाँ प्यार इस तरह से ही हमने भी किया था


हमने भी किसी दिल से, रिश्ता कभी बनाया

इस दिल का आशियाना, सपनो से था सजाया

बस एक भूल कर दी, जो भूल ना सके हैं

ख्वाइश वफ़ा की करके, बेवफा से दिल लगाया

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