Wednesday, September 1, 2010

ऐ दिल-ए-नादान


ऐ दिल, ऐसी नादानी ना कर!
मुस्कुराने दे मुझे, बेईमानी ना कर...

उठने दे नक़ाब इस रुख़ से ज़ालिम
अपने दीवाने से परदा-दारी ना कर...

उसका ख़याल ही, बेकरार कर देता है
तू भी चुप रह कर अब बेकरारी ना कर...

लूट ले जाने दे , मेरे ख्वाबो के जहाँ को
दरवाज़ा खुला छोड़ दे , पहरेदारी ना कर...

बसने दे ख़यालो में, उस चेहरे की हक़ीक़त, सागर
जो आँखें ही जला दे, उन ख्वाबो से यारी ना कर

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